विष्णु चालीसा हिंदू धर्म में ब्रह्मांड के संरक्षक भगवान विष्णु को समर्पित एक प्रार्थना है। इस प्रार्थना में 40 श्लोक हैं, जिनमें से प्रत्येक में भगवान विष्णु के गुणों और विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है। ऐसा माना जाता है कि विष्णु चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में शांति, समृद्धि और सद्भाव आता है। भगवान विष्णु भगवान ब्रह्मा और भगवान शिव के साथ हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। उन्हें ब्रह्मांड का संरक्षक माना जाता है और वे अपने परोपकारी और दयालु स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। विष्णु चालीसा एक प्रार्थना है जो भगवान विष्णु के गुणों की प्रशंसा करती है, जिसमें उनकी करुणा, ज्ञान और शक्ति शामिल है। ऐसा माना जाता है कि इस प्रार्थना को श्रद्धापूर्वक करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक और भौतिक धन प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। विष्णु चालीसा का पहला श्लोक भगवान विष्णु के आह्वान से शुरू होता है। इसमें लिखा है, "श्री विष्णु चालीसा, जय जय विष्णु भगवान।" यह श्लोक प्रार्थना के लिए स्वर निर्धारित करता है और भगवान विष्णु के साथ उपासक का संबंध स्थापित करता है। निम्नलिखित छंद भगवान विष्णु के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को उजागर करते हैं, जैसे कि उनका दिव्य रूप, उनके हथियार और उनकी पत्नी, देवी लक्ष्मी। विष्णु चालीसा के दूसरे श्लोक में भगवान विष्णु के दिव्य रूप का वर्णन है। इसमें लिखा है, "विष्णु रूप धारी जग जननी, विष्णु रूप धारी जग पालक।" यह श्लोक ब्रह्मांड के रक्षक के रूप में भगवान विष्णु की भूमिका और उनके दिव्य रूप पर प्रकाश डालता है, जो ब्रह्मांडीय व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करता है। विष्णु चालीसा के तीसरे श्लोक में भगवान विष्णु के शस्त्रों की स्तुति की गई है। इसमें लिखा है, "शंख चक्र गदा पद्म नाग, शारंगधर सारथी शोभिता।" इस श्लोक में भगवान विष्णु के शंख, चक्र, गदा और कमल सहित उनके शस्त्रों का उल्लेख है। ये हथियार उसकी शक्ति और बुराई को हराने की क्षमता का प्रतीक हैं। विष्णु चालीसा का चौथा श्लोक भगवान विष्णु की पत्नी, देवी लक्ष्मी की स्तुति करता है। इसमें लिखा है, "विष्णु प्रिये जय जगत जननी, श्री हरिप्रिये जय लक्ष्मी।" यह श्लोक भगवान विष्णु के जीवन में देवी लक्ष्मी के महत्व पर प्रकाश डालता है और बताता है कि कैसे वह सभी धन और समृद्धि का स्रोत हैं। विष्णु चालीसा के निम्नलिखित श्लोकों में भगवान विष्णु के गुणों और गुणों की स्तुति जारी है। प्रार्थना भगवान विष्णु के ज्ञान, ब्रह्मांड को बनाने और बनाए रखने की उनकी क्षमता और सभी जीवित प्राणियों के लिए उनकी करुणा पर प्रकाश डालती है। छंद भी भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की प्रशंसा करते हैं, जैसे कि भगवान राम और भगवान कृष्ण, और कैसे उन्होंने दुनिया में सकारात्मक बदलाव लाए हैं। विष्णु चालीसा के अंतिम छंद भगवान विष्णु के प्रति उपासक की भक्ति और उनके निकट रहने की उनकी इच्छा को व्यक्त करते हैं। प्रार्थना छंद के साथ समाप्त होती है, "जो सुमिरत सिद्धि होय, गन नाथ धीरज दुर्लभ सो।" यह श्लोक इस बात पर जोर देता है कि जो लोग भक्ति और विश्वास के साथ भगवान विष्णु का स्मरण करते हैं, उन्हें सफलता प्राप्त होती है और उनके जीवन में शांति प्राप्त होती है। अंत में, विष्णु चालीसा एक शक्तिशाली प्रार्थना है जो भगवान विष्णु के गुणों और गुणों की प्रशंसा करती है। भक्ति के साथ इस प्रार्थना को पढ़ने से व्यक्ति को आध्यात्मिक और भौतिक धन प्राप्त करने में मदद मिल सकती है और उनके जीवन में शांति और सद्भाव आ सकता है। यह किसी के जीवन में आस्था और भक्ति के महत्व और सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रार्थना की शक्ति का स्मरण कराता है।
Vishnu Chalisa is a prayer dedicated to Lord Vishnu, the preserver of the universe in Hinduism. This prayer consists of 40 verses, each highlighting the virtues and characteristics of Lord Vishnu. It is believed that reciting Vishnu Chalisa brings peace, prosperity, and harmony to one's life. Lord Vishnu is one of the principal deities in Hinduism, along with Lord Brahma and Lord Shiva. He is considered the preserver of the universe and is known for his benevolent and kind nature. Vishnu Chalisa is a prayer that praises the qualities of Lord Vishnu, including his compassion, wisdom, and strength. It is believed that reciting this prayer with devotion can help one attain spiritual and material wealth. The first verse of Vishnu Chalisa begins with the invocation of Lord Vishnu. It reads, "Shri Vishnu chalisa, jai jai vishnu bhagwan." This verse sets the tone for the prayer and establishes the worshipper's connection with Lord Vishnu. The following verses highlight various aspects of Lord Vishnu's personality, such as his divine form, his weapons, and his consort, Goddess Lakshmi. The second verse of Vishnu Chalisa describes Lord Vishnu's divine form. It reads, "Vishnu roop dhari jag janani, vishnu roop dhari jag palak." This verse highlights Lord Vishnu's role as the protector of the universe and his divine form, which represents the cosmic order. The third verse of Vishnu Chalisa praises Lord Vishnu's weapons. It reads, "Shankh chakra gada padma naga, sharngdhar sarathi sobhita." This verse refers to Lord Vishnu's weapons, including his conch shell, discus, mace, and lotus. These weapons symbolize his power and ability to defeat evil. The fourth verse of Vishnu Chalisa praises Lord Vishnu's consort, Goddess Lakshmi. It reads, "Vishnu priye jay jagat janani, shree haripriye jai lakshmi." This verse highlights the importance of Goddess Lakshmi in Lord Vishnu's life and how she is the source of all wealth and prosperity. The following verses of Vishnu Chalisa continue to praise Lord Vishnu's virtues and qualities. The prayer highlights Lord Vishnu's wisdom, his ability to create and sustain the universe, and his compassion for all living beings. The verses also praise Lord Vishnu's various incarnations, such as Lord Rama and Lord Krishna, and how they have brought about positive change in the world. The final verses of Vishnu Chalisa express the worshipper's devotion to Lord Vishnu and their desire to be close to him. The prayer concludes with the verse, "Jo sumirat siddhi hoy, gan naath dhiraj durlabh so." This verse emphasizes that those who remember Lord Vishnu with devotion and faith will attain success and find peace in their lives. In conclusion, Vishnu Chalisa is a powerful prayer that praises the qualities and virtues of Lord Vishnu. Reciting this prayer with devotion can help one attain spiritual and material wealth and bring peace and harmony to their life. It is a reminder of the importance of faith and devotion in one's life and the power of prayer to bring about positive change.
दोहा
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥
विष्णु चालीसा
नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।
तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत ॥
शंख चक्र कर गदा विराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे ।
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥
सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥
पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।
करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण ॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा ।
भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा ॥
आप वाराह रूप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया ।
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया ॥
अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया ।
देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया ॥
कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया ॥
वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।
मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया ॥
असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ।
हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई ॥
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी ।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥
देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी ॥
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे ।
गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥
हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे ।
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥
चाहता आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन ।
जानूं नहीं योग्य जब पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥
शीलदया सन्तोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ।
करहुं आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण, कौन भांति मैं करहु समर्पण ।
सुर मुनि करत सदा सेवकाई, हर्षित रहत परम गति पाई ॥
दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई ।
पाप दोष संताप नशाओ, भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥
सुत सम्पति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ ।
निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥
॥ इति श्री विष्णु चालीसा ॥
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