श्री भैरव चालीसा एक चालीस चौपाइयों का स्तोत्र है जो भगवान भैरव को समर्पित है, जिन्हें शिव का भयावह रूप कहा जाता है और वाराणसी के कोतवाल माने जाते हैं। यह भक्ति-गीत उनके दिव्य रूप, रौद्र गाथा और रक्षक शक्ति का बखान करता है, जिससे भक्तों में भय-निवारण एवं आंतरिक स्थिरता का भाव जागृत होता है।
भगवान काल भैरव का पुराणिक महत्व अत्यंत प्राचीन है। वे शिवजी के प्रसादस्वरूप भय और समय के अधिपति माने जाते हैं। भैरव चालीसा की रचना-काल एवं मूल रचना अधिकारिता अज्ञात है, पर यह उत्तर भारत, विशेषकर वाराणसी क्षेत्र में प्रचलित रही है। भक्तजन इसे शनिवार, अमावस्या या भैरव पूजन के अवसर पर जपते हैं।
“जय जय जय श्री काली के” भैरव को काली का अभिन्न अवतार बताते हुए शक्ति एवं विनाश शक्ति का बखान करता है।
“श्री भैरव संस्ता हरण मंगल करे” संकटों का नाशन करने वाले एवं मंगल प्रदान करने वाले रूप का स्मरण कराता है।
“हरि के हार उतारण कारन भये दूरी” विषयी बाधाएं दूर होने का स्पष्ट आश्वासन देता है।
चालीसा के जप हेतु निम्न बातों का पालन किया जाता है:
समय और स्थान शांत वातावरण में सुबह स्नान पश्चात् या शाम को दीप प्रज्वलित कर पाठ करें।
प्रारंभिक पूजन कच्ची धूप, कपूर और फूल चढ़ाएं; ध्यान श्लोक का उच्चारण करें।
नियमितता प्रतिदिन 40 चौपाईयां जपने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
अनुष्ठान अगर संभव हो, शनिवार या अमावस्या के दिन विशेष भैरव भोजन एवं प्रसाद अर्पित करें।
श्री भैरव चालीसा के नियमित पाठ से निम्न लाभ होते बताए जाते हैं:
भय निवारण एवं मानसिक स्थिरता
शत्रु-विनाश एवं सुरक्षा की अनुभूति
आर्थिक एवं पारिवारिक कल्याण
राहु-केतु दोष निवारण में सहायक
वाराणसी में भैरव दर्शन का प्रभावी फल
भक्तों के अनुभव बताते हैं कि संकटमोचन भैरव की कृपा से भय एवं बाधाएं लुप्त होती हैं।
Shri Bhairav Chalisa is a hymn of forty quatrains dedicated to Lord Bhairav, who is said to be the fearsome form of Shiva and is considered the Kotwal of Varanasi. This devotional song describes his divine form, fierce tale and protective power, which awakens the feeling of fear-removal and inner stability in the devotees.
Historical background
The Puranic significance of Lord Kaal Bhairav is very ancient. He is considered to be the lord of fear and time as a prasad of Lord Shiva. The composition period and original authorship of Bhairav Chalisa is unknown, but it has been popular in North India, especially in the Varanasi region. Devotees chant it on Saturday, Amavasya or on the occasion of Bhairav worship.
Meaning of major verses
“Jai Jai Jai Shri Kali Ke” describes Bhairav as an integral incarnation of Kali and describes his power and destructive power.
“Shri Bhairav Sansta Haran Mangal Kare” reminds us of the form that destroys troubles and bestows auspiciousness.
“Hari ke haar utaran kaaran bhaye doori” gives a clear assurance of removal of obstacles.
Recitation and Conduct
The following things are followed for chanting the Chalisa:
Time and place Recite in a calm environment in the morning after bath or in the evening by lighting a lamp.
Initial worship Offer raw incense, camphor and flowers; recite the Dhyan Shloka.
Regularity Chanting 40 Chaupais daily leads to the desired results.
If possible, offer special Bhairav food and Prasad on Saturday or Amavasya.
Spiritual significance and benefits
The following benefits are said to be derived from regular recitation of Shri Bhairav Chalisa:
Fear removal and mental stability
Enemy destruction and feeling of security
Financial and family welfare
Helpful in the removal of Rahu-Ketu doshas
Effective results of Bhairav Darshan in Varanasi
The experiences of devotees show that fears and obstacles disappear with the grace of Sankatmochan Bhairav. life. By doing so, one can not only appease Lord Shani but also earn his blessings and grace.
॥ दोहा॥
श्री गणपति गुरु गौरी पद प्रेम सहित धरि माथ।
चालीसा वंदन करो श्री शिव भैरवनाथ॥
श्री भैरव संकट हरण मंगल करण कृपाल।
श्याम वरण विकराल वपु लोचन लाल विशाल॥
जय जय श्री काली के लाला। जयति जयति काशी- कुतवाला॥
जयति बटुक- भैरव भय हारी। जयति काल- भैरव बलकारी॥
जयति नाथ- भैरव विख्याता। जयति सर्व- भैरव सुखदाता॥
भैरव रूप कियो शिव धारण। भव के भार उतारण कारण॥
भैरव रव सुनि हवै भय दूरी। सब विधि होय कामना पूरी॥
शेष महेश आदि गुण गायो। काशी- कोतवाल कहलायो॥
जटा जूट शिर चंद्र विराजत। बाला मुकुट बिजायठ साजत॥
कटि करधनी घुंघरू बाजत। दर्शन करत सकल भय भाजत॥
जीवन दान दास को दीन्ह्यो। कीन्ह्यो कृपा नाथ तब चीन्ह्यो॥
वसि रसना बनि सारद- काली। दीन्ह्यो वर राख्यो मम लाली॥
धन्य धन्य भैरव भय भंजन। जय मनरंजन खल दल भंजन॥
कर त्रिशूल डमरू शुचि कोड़ा। कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोडा॥
जो भैरव निर्भय गुण गावत। अष्टसिद्धि नव निधि फल पावत॥
रूप विशाल कठिन दुख मोचन। क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन॥
अगणित भूत प्रेत संग डोलत। बम बम बम शिव बम बम बोलत॥
रुद्रकाय काली के लाला। महा कालहू के हो काला॥
बटुक नाथ हो काल गंभीरा। श्वेत रक्त अरु श्याम शरीरा॥
करत नीनहूं रूप प्रकाशा। भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा॥
रत्न जड़ित कंचन सिंहासन। व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन॥
तुमहि जाइ काशिहिं जन ध्यावहिं। विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं॥
जय प्रभु संहारक सुनन्द जय। जय उन्नत हर उमा नन्द जय॥
भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय। वैजनाथ श्री जगतनाथ जय॥
महा भीम भीषण शरीर जय। रुद्र त्रयम्बक धीर वीर जय॥
अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय। स्वानारुढ़ सयचंद्र नाथ जय॥
निमिष दिगंबर चक्रनाथ जय। गहत अनाथन नाथ हाथ जय॥
त्रेशलेश भूतेश चंद्र जय। क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय॥
श्री वामन नकुलेश चण्ड जय। कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय॥
रुद्र बटुक क्रोधेश कालधर। चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर॥
करि मद पान शम्भु गुणगावत। चौंसठ योगिन संग नचावत॥
करत कृपा जन पर बहु ढंगा। काशी कोतवाल अड़बंगा॥
देयं काल भैरव जब सोटा। नसै पाप मोटा से मोटा॥
जनकर निर्मल होय शरीरा। मिटै सकल संकट भव पीरा॥
श्री भैरव भूतों के राजा। बाधा हरत करत शुभ काजा॥
ऐलादी के दुख निवारयो। सदा कृपाकरि काज सम्हारयो॥
सुन्दर दास सहित अनुरागा। श्री दुर्वासा निकट प्रयागा॥
श्री भैरव जी की जय लेख्यो। सकल कामना पूरण देख्यो॥
॥ दोहा॥
जय जय जय भैरव बटुक स्वामी संकट टार।
कृपा दास पर कीजिए शंकर के अवतार॥
यदि आप एक साहित्यकार हैं और अपना स्वरचित धार्मिक ग्रंथ या रचना प्रकाशित करना चाहते हैं तो नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके हमसे संपर्क करें।