श्री पार्वती चालीसा एक प्रसिद्ध हिंदी भक्ति स्तोत्र है, जिसमें चालीस चोपाईयों और दो दोहों के माध्यम से माता पार्वती की महिमा और दिव्य गुणों का वर्णन होता है। इसका पाठ नवरात्रि, महा शिवरात्रि और शुक्रवार को भक्ति के साथ किया जाता है। माता पार्वती हिंदू धर्म में शक्ति (शक्ति) का आदिशक्ति रूप हैं। उन्हें हिमालयपति हिमवान की कन्या, भगवान शिव की अर्द्धांगिनी और शक्ति स्वरूप दुर्गा का अवतार माना जाता है। पार्वती सुख, समृद्धि, संतोष और परिवारिक सौहार्द्य की प्रतीक हैं। श्री पार्वती चालीसा का रचनाकार अनाम है और यह मौखिक परंपरा के माध्यम से पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रसारित हुआ। यह स्तोत्र आदिशक्ति परंपरा में प्रतिष्ठित माना जाता है और सरलीकृत हिंदी छंद-रूप में रचा गया है। इस स्तोत्र के पूर्ण पाठ के लिए BookPublish.in पर हिंदी मूल, लिप्यंतरण उपलब्ध हैं। निर्दिष्ट अवसरों पर पार्वती चालीसा का नियमित पाठ करने से भक्ति-भाव बढ़ता है और मन में शांति का अनुभव होता है। इच्छाओं की पूर्ति और संकटों का निवारण, पारिवारिक सौहार्द्य एवं वैवाहिक कल्याण, मानसिक शांति, थकान और अवसाद में राहत, आध्यात्मिक उन्नति एवं शक्ति की अनुभूति (ये लाभ पारंपरिक आस्था पर आधारित हैं), श्री पार्वती चालीसा नवरात्रि और दुर्गा पूजा के दौरान सामूहिक कीर्तन में गाया जाता है। महा शिवरात्रि की मध्यरात्रि में इसका पाठ विशिष्ट होता है। कई मंदिरों में शुक्रवार को विशेष पाठ कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
Shri Parvati Chalisa is a famous Hindi devotional stotra, which describes the glory and divine qualities of Goddess Parvati through forty quatrains and two couplets. It is recited with devotion on Navratri, Maha Shivratri and Fridays. Goddess Parvati is the Adishakti form of Shakti (Power) in Hinduism. She is considered to be the daughter of Himalayapati Himavan, the better half of Lord Shiva and the incarnation of Shakti Swaroop Durga. Parvati is a symbol of happiness, prosperity, satisfaction and family harmony. The author of Shri Parvati Chalisa is anonymous and it was transmitted from generation to generation through oral tradition. This stotra is considered revered in the Adishakti tradition and is composed in simplified Hindi verse form. Hindi original, transliteration are available on BookPublish.in for the full text of this stotra. Regular recitation of Parvati Chalisa on specified occasions increases devotion and brings peace to the mind. For the fulfilment of desires and removal of troubles, family harmony and marital well-being, mental peace, relief from fatigue and depression, spiritual advancement and feeling of strength (these benefits are based on traditional belief), Shri Parvati Chalisa is sung in group kirtans during Navratri and Durga Puja. Its recitation is special during the midnight of Maha Shivaratri. Many temples organize special recitation programs on Fridays.
॥ दोहा ॥
जय गिरी तनये दक्षजे,शम्भु प्रिये गुणखानि।
गणपति जननी पार्वती,अम्बे! शक्ति! भवानि॥
॥ चौपाई ॥
ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे।पंच बदन नित तुमको ध्यावे॥
षड्मुख कहि न सकत यश तेरो।सहसबदन श्रम करत घनेरो॥
तेऊ पार न पावत माता।स्थित रक्षा लय हित सजाता॥
अधर प्रवाल सदृश अरुणारे।अति कमनीय नयन कजरारे॥
ललित ललाट विलेपित केशर।कुंकुम अक्षत शोभा मनहर॥
कनक बसन कंचुकी सजाए।कटी मेखला दिव्य लहराए॥
कण्ठ मदार हार की शोभा।जाहि देखि सहजहि मन लोभा॥
बालारुण अनन्त छबि धारी।आभूषण की शोभा प्यारी॥
नाना रत्न जटित सिंहासन।तापर राजति हरि चतुरानन॥
इन्द्रादिक परिवार पूजित।जग मृग नाग यक्ष रव कूजित॥
गिर कैलास निवासिनी जय जय।कोटिक प्रभा विकासिन जय जय॥
त्रिभुवन सकल कुटुम्ब तिहारी।अणु अणु महं तुम्हारी उजियारी॥
हैं महेश प्राणेश! तुम्हारे।त्रिभुवन के जो नित रखवारे॥
उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब।सुकृत पुरातन उदित भए तब॥
बूढ़ा बैल सवारी जिनकी।महिमा का गावे कोउ तिनकी॥
सदा श्मशान बिहारी शंकर।आभूषण हैं भुजंग भयंकर॥
कण्ठ हलाहल को छबि छायी।नीलकण्ठ की पदवी पायी॥
देव मगन के हित अस कीन्हों।विष लै आपु तिनहि अमि दीन्हों॥
ताकी तुम पत्नी छवि धारिणि।दूरित विदारिणी मंगल कारिणि॥
देखि परम सौन्दर्य तिहारो।त्रिभुवन चकित बनावन हारो॥
भय भीता सो माता गंगा।लज्जा मय है सलिल तरंगा॥
सौत समान शम्भु पहआयी।विष्णु पदाब्ज छोड़ि सो धायी॥
तेहिकों कमल बदन मुरझायो।लखि सत्वर शिव शीश चढ़ायो॥
नित्यानन्द करी बरदायिनी।अभय भक्त कर नित अनपायिनी॥
अखिल पाप त्रयताप निकन्दिनि।माहेश्वरी हिमालय नन्दिनि॥
काशी पुरी सदा मन भायी।सिद्ध पीठ तेहि आपु बनायी॥
भगवती प्रतिदिन भिक्षा दात्री।कृपा प्रमोद सनेह विधात्री॥
रिपुक्षय कारिणि जय जय अम्बे।वाचा सिद्ध करि अवलम्बे॥
गौरी उमा शंकरी काली।अन्नपूर्णा जग प्रतिपाली॥
सब जन की ईश्वरी भगवती।पतिप्राणा परमेश्वरी सती॥
तुमने कठिन तपस्या कीनी।नारद सों जब शिक्षा लीनी॥
अन्न न नीर न वायु अहारा।अस्थि मात्रतन भयउ तुम्हारा॥
पत्र घास को खाद्य न भायउ।उमा नाम तब तुमने पायउ॥
तप बिलोकि रिषि सात पधारे।लगे डिगावन डिगी न हारे॥
तब तव जय जय जय उच्चारेउ।सप्तरिषि निज गेह सिधारेउ॥
सुर विधि विष्णु पास तब आए।वर देने के वचन सुनाए॥
मांगे उमा वर पति तुम तिनसों।चाहत जग त्रिभुवन निधि जिनसों॥
एवमस्तु कहि ते दोऊ गए।सुफल मनोरथ तुमने लए॥
करि विवाह शिव सों हे भामा।पुनः कहाई हर की बामा॥
जो पढ़िहै जन यह चालीसा।धन जन सुख देइहै तेहि ईसा॥
॥ दोहा ॥
कूट चन्द्रिका सुभग शिर,जयति जयति सुख खानि।
पार्वती निज भक्त हित,रहहु सदा वरदानि॥
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