श्री राधा चालीसा एक प्रार्थनात्मक स्तोत्र है जिसमें माता राधा की महिमा का वर्णन 40 चौपाइयों द्वारा किया गया है। इसमें राधा जी के सौंदर्य, करुणा, और प्रेम की अनंत गाथा समाहित है। यह भक्तिपूरित पाठ भक्तों में प्रेमभाव और आत्मिक आनंद जगाता है। श्री राधा चालीसा का सटीक रचनाकाल और रचनाकार अज्ञात हैं। लोकप्रिय मान्यता के अनुसार यह मध्ययुगीन भक्ति परंपरा का अंग है और जनश्रुतियों में प्रचलित हुआ। बचनों के प्रारूप और भाषा से इसके भक्तिकालीन मूल का अनुमान लगाया जाता है। चालीसा की शुरुआत दो दोहों (दोहा छंद) से होती है, जो यथोचित मंत्रोच्चारण और भाव पूजन हेतु पवित्रता बढ़ाते हैं। इसके पश्चात 40 चौपाइयाँ (चौपाई छंद) आती हैं जिनमें राधा जी के रूप, चरित्र, लीला और भक्तों के प्रति उनकी दृष्टि का विस्तृत वर्णन है। प्रत्येक चौपाई में भक्ति रस की विविध अनुभूतियाँ उभर कर सामने आती हैं। इसका पाठ किसी भी शुभ मुहूर्त में सुबह या शाम आरंभ किया जा सकता है। नियमित एक बार पाठ से आंतरिक शांति मिलती है और मनोबल बढ़ता है। विशेष रूप से राधा पूर्णिमा या राधाष्टमी पर संपूर्ण पाठ का आयोजन किया जाता है।
Shri Radha Chalisa is a prayerful hymn in which the glory of Mother Radha is described through 40 chaupais. It contains the infinite saga of Radha ji's beauty, compassion, and love. This devotional recitation awakens love and spiritual joy in the devotees. The exact composition and creator of Shri Radha Chalisa are unknown. According to popular belief, it is a part of the medieval devotional tradition and became popular in folklore. Its devotional origin is estimated from the format and language of the words. Chalisa begins with two couplets (Doha Chhand), which increase purity for proper chanting and Bhaav Poojan. After this come 40 chaupais (Chaupai Chhand) in which there is a detailed description of Radha ji's form, character, leela and her vision towards the devotees. Various experiences of devotion emerge in each chaupai. Its recitation can be started in any auspicious time in the morning or evening. Regular recitation once gives inner peace and increases morale. Especially on Radha Purnima or Radhashtami the complete recitation is organised.
॥ दोहा ॥
श्री राधे वृषभानुजा,भक्तनि प्राणाधार।
वृन्दाविपिन विहारिणि,प्रणवौं बारंबार॥
जैसौ तैसौ रावरौ,कृष्ण प्रिया सुखधाम।
चरण शरण निज दीजिये,सुन्दर सुखद ललाम॥
॥ चौपाई ॥
जय वृषभानु कुँवरि श्री श्यामा।कीरति नंदिनी शोभा धामा॥
नित्य विहारिनि श्याम अधारा।अमित मोद मंगल दातारा॥
रास विलासिनि रस विस्तारिनि।सहचरि सुभग यूथ मन भावनि॥
नित्य किशोरी राधा गोरी।श्याम प्राणधन अति जिय भोरी॥
करुणा सागर हिय उमंगिनी।ललितादिक सखियन की संगिनी॥
दिन कर कन्या कूल विहारिनि।कृष्ण प्राण प्रिय हिय हुलसावनि॥
नित्य श्याम तुमरौ गुण गावैं।राधा राधा कहि हरषावैं॥
मुरली में नित नाम उचारें।तुव कारण लीला वपु धारें॥
प्रेम स्वरूपिणि अति सुकुमारी।श्याम प्रिया वृषभानु दुलारी॥
नवल किशोरी अति छवि धामा।द्युति लघु लगै कोटि रति कामा॥
गौरांगी शशि निंदक बदना।सुभग चपल अनियारे नयना॥
जावक युत युग पंकज चरना।नूपुर धुनि प्रीतम मन हरना॥
संतत सहचरि सेवा करहीं।महा मोद मंगल मन भरहीं॥
रसिकन जीवन प्राण अधारा।राधा नाम सकल सुख सारा॥
अगम अगोचर नित्य स्वरूपा।ध्यान धरत निशिदिन ब्रज भूपा॥
उपजेउ जासु अंश गुण खानी।कोटिन उमा रमा ब्रह्मानी॥
नित्य धाम गोलोक विहारिनि।जन रक्षक दुख दोष नसावनि॥
शिव अज मुनि सनकादिक नारद।पार न पाँइ शेष अरु शारद॥
राधा शुभ गुण रूप उजारी।निरखि प्रसन्न होत बनबारी॥
ब्रज जीवन धन राधा रानी।महिमा अमित न जाय बखानी॥
प्रीतम संग देइ गलबाँही।बिहरत नित वृन्दावन माँही॥
राधा कृष्ण कृष्ण कहैं राधा।एक रूप दोउ प्रीति अगाधा॥
श्री राधा मोहन मन हरनी।जन सुख दायक प्रफुलित बदनी॥
कोटिक रूप धरें नंद नंदा।दर्श करन हित गोकुल चन्दा॥
रास केलि करि तुम्हें रिझावें।मान करौ जब अति दुःख पावें॥
प्रफुलित होत दर्श जब पावें।विविध भांति नित विनय सुनावें॥
वृन्दारण्य विहारिनि श्यामा।नाम लेत पूरण सब कामा॥
कोटिन यज्ञ तपस्या करहू।विविध नेम व्रत हिय में धरहू॥
तऊ न श्याम भक्तहिं अपनावें।जब लगि राधा नाम न गावें॥
वृन्दाविपिन स्वामिनी राधा।लीला वपु तब अमित अगाधा॥
स्वयं कृष्ण पावैं नहिं पारा।और तुम्हें को जानन हारा॥
श्री राधा रस प्रीति अभेदा।सादर गान करत नित वेदा॥
राधा त्यागि कृष्ण को भजिहैं।ते सपनेहु जग जलधि न तरि हैं॥
कीरति कुँवरि लाड़िली राधा।सुमिरत सकल मिटहिं भवबाधा॥
नाम अमंगल मूल नसावन।त्रिविध ताप हर हरि मनभावन॥
राधा नाम लेइ जो कोई।सहजहि दामोदर बस होई॥
राधा नाम परम सुखदाई।भजतहिं कृपा करहिं यदुराई॥
यशुमति नन्दन पीछे फिरिहैं।जो कोऊ राधा नाम सुमिरिहैं॥
रास विहारिनि श्यामा प्यारी।करहु कृपा बरसाने वारी॥
वृन्दावन है शरण तिहारी।जय जय जय वृषभानु दुलारी॥
॥ दोहा ॥
श्रीराधा सर्वेश्वरी,रसिकेश्वर घनश्याम।
करहुँ निरंतर बास मैं,श्रीवृन्दावन धाम॥
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